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उदू॑ अयाँ उपव॒क्तेव॑ बा॒हू हि॑र॒ण्यया॑ सवि॒ता सु॒प्रती॑का। दि॒वो रोहां॑स्यरुहत्पृथि॒व्या अरी॑रमत्प॒तय॒त्कच्चि॒दभ्व॑म् ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ud ū ayām̐ upavakteva bāhū hiraṇyayā savitā supratīkā | divo rohāṁsy aruhat pṛthivyā arīramat patayat kac cid abhvam ||

पद पाठ

उत्। ऊँ॒ इति॑। अ॒या॒न्। उ॒प॒व॒क्ताऽइ॑व। बा॒हू इति॑। हि॒र॒ण्यया॑। स॒वि॒ता। सु॒ऽप्रती॑का। दि॒वः। रोहां॑सि। अ॒रु॒ह॒त्। पृ॒थि॒व्याः। अरी॑रमत्। प॒तय॑त्। कत्। चि॒त्। अभ्व॑म् ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:71» मन्त्र:5 | अष्टक:5» अध्याय:1» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:6» अनुवाक:6» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह राजा किसके तुल्य कैसा हो, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (सविता) सूर्यमण्डल (दिवः) आकाश की (रोहांसि) चढ़ाइयों को (अरुहत्) चढ़ता है और (पृथिव्याः) अन्तरिक्ष के मध्य में भूमि के समस्त (अभ्वम्) महान् न्याय को (अरीरमत्) वर्त्तावे (चित्) और (पतयत्) पति के समान आचरण करे, वैसे जिसकी (सुप्रतीका) सुन्दर प्रतीति करनेवाले काम जिनसे होते ऐसे (हिरण्यया) हिरण्य के समान सुदृढ़ सुशोभित (बाहू) भुजा वर्त्तमान है, वह (उ) हो (उपवक्तेव) समीप कहनेवाले के समान (कत्) कब (उत्, अयान्) उदय हो ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे राजन् ! आप कब सूर्य के समान न्याय और विनय से प्रकाशित सुन्दर दृढ़ अङ्गयुक्त, श्रेष्ठ धर्मज्ञ विद्वानों के समान वक्ता होओ। जैसे इस जगत् में सर्वोपकार के लिये ईश्वर ने सूर्य बनाया है, वैसे ही सब के सुख के लिये राजा बनाया है ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स राजा किंवत् कीदृशो भवेदित्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यथा सविता दिवो रोहांस्यरुहत् पृथिव्याः सर्वमभ्वमरीरमच्चिदपि पतयत् तथा अस्य सुप्रतीका हिरण्यया बाहू वर्तते स उ उपवक्तेव कदुदयान् ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (उत्) (उ) (अयान्) इयात् (उपवक्तेव) यथोपवक्ता तथा (बाहू) (हिरण्यया) हिरण्यवत् सुदृढौ सुशोभितौ (सविता) सूर्य इव (सुप्रतीका) शोभनानि प्रतीकानि प्रतीतिकराणि कर्माणि याभ्यां तौ (दिवः) आकाशस्य (रोहांसि) आरोहणानि (अरुहत्) रोहति (पृथिव्याः) अन्तरिक्षस्य मध्य इव भूमेः (अरीरमत्) रमयेत् (पतयत्) पतिः स्वामी पालक इवाचरेत् (कत्) कदा (चित्) अपि (अभ्वम्) महान्तं न्यायम् ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे राजँस्त्वं कदा सूर्यवन्न्यायविनयाभ्यां प्रकाशितः सुदृढाङ्ग आप्तवद्वक्ता भवेः यथाऽस्मिञ्जगति सर्वोपकारायेश्वरेण सूर्यो निर्मितस्तथैव सर्वेषां सुखाय राजा विहितः ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हे राजा ! तू सूर्याप्रमाणे न्याय व विनयाने वागून सुंदर दृढ शरीरयुक्त, श्रेष्ठ धर्मज्ञ विद्वानाप्रमाणे वक्ता कधी होशील ? या जगता जसा सर्वांच्या उपकारासाठी ईश्वराने सूर्य निर्माण केलेला आहे तसाच सर्वांच्या सुखासाठी राजा निर्माण केलेला आहे. ॥ ५ ॥